सफेद दाग के बारे में भ्रांतियों को दूर कर लें
विटिलिगो त्वचा पर होने वाले सफेद धब्बों को कहते हैं। किसी व्यक्ति में इम्यून सेल और रंग उत्पादक सेल्स में होने वाले बदलाव के कारण यह स्थिति होती है। मुख्य रूप से ये त्वचा के पिगमेंट लॉस की समस्या है जिसके कारण कहीं कहीं पर त्वचा अपना प्राकृतिक रंग छोड़कर सफेद हो जाती है। दिल्ली की जानी मानी त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉक्टर दीपाली भारद्वाज सेहतराग से बातचीत में कहती हैं कि ये समस्या किसी भी संक्रमण या एलर्जी या भोजन में किसी प्रकार की कमी के कारण नहीं होती है। सफेद दाग फैलने वाली बीमारी नहीं है और अधिकांश मामलों में ये आनुवांशिक भी नहीं होती है। ये लेप्रोसी यानी कोढ़ की बीमारी भी नहीं है। दरअसल ये किसी व्यक्ति के सिर्फ बाहरी हिस्से को प्रभावित करती है।
डॉक्टर दीपाली भारद्वाज कहती हैं कि ये बीमारी किसी भी व्यक्ति की दिमागी या शारीरिक क्षमता और दक्षता को प्रभावित नहीं करती। आम तौर पर माना जाता है कि ये बीमारी ठीक नहीं हो सकती मगर डॉक्टर दीपाली के अनुसार नियमित और लंबे इलाज के जरिये इसका प्रभावी उपचार किया जा सकता है।
इस बीमारी में सबसे बड़ी परेशानी मरीज में हीन भावना का भर जाना है मगर इस स्थिति से निकलने के लिए आजकल कई स्वयं सहायता समूह ऐसे मरीजों को एक प्लेटफार्म पर लाने में मदद करते हैं जिससे इनके बीच आपसी संवाद बढ़ता है। इससे मरीजों को एक दूसरे के विचार और अनुभव जानने का मौका मिलता है।
ये समझने की जरूरत है कि सफेद दाग से पीड़ित लोग जिंदगी के अलग अलग क्षेत्रों में ऊंचाइयों पर पहुंचे हैं। त्वचा की ये समस्या उनकी कामयाबी के आड़ नहीं आ सकी है।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर के.के. अग्रवाल कहते हैं कि भारत में 2 से लेकर 5 फीसदी तक लोग सफेद दाग से पीड़ित हैं। उनका कहना है कि इस बीमारी के बारे में जागरूकता की भारी कमी है। आमतौर पर इस बीमारी से ग्रस्त लोगों को हीन भावना से देखा जाता है मगर लोगों के बीच इस बीमारी के बारे में फैली भ्रांतियों को दूर करने और इस बीमारी के मरीजों के प्रति सम्मान दिखाने की जरूरत है। ये समझना चाहिए कि ये संक्रामक नहीं है यानी एक से दूसरे में नहीं फैलता।
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